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"बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते  
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गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है <br>
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'गा़लिब' को बुरा क्योँ कहो अच्छा मेरे आगे <br><br>
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13:26, 18 मई 2009 का अवतरण


बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल<ref>बच्चों का खेल
</ref>है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे

इक खेल है औरंग-ए-सुलेमाँ <ref>सुलेमान का राजसिंहासन
</ref>मेरे नज़दीक
इक बात है ऐजाज़-ए-मसीहा<ref>ईसा का चमत्कार जिनकी फूँक से मुर्दे जीवित हो उठते थे</ref> मेरे आगे

जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर
जुज़<ref>के सिवा </ref> वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया<ref>हस्ती जैसी चीज़
</ref> मेरे आगे

होता है निहाँ <ref>प्रकट
</ref>गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं<ref>माथा</ref> ख़ाक पे दरिया मेरे आगे

मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख के क्या रन्ग है तेरा मेरे आगे

सच कहते हो ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा<ref>गर्वित
 और आत्म-अलंकृत
</ref> हूँ, न क्योँ हूँ
बैठा है बुत-ए-आईना सीमा<ref>दर्पण के जैसे चमकने वाला माशूक
</ref> मेरे आगे

फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार<ref>बात का अंदाज़ यूँ कि जैसे फूल झड़ते हों
</ref>
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा <ref>मधुपात्र और मदिरा
</ref>मेरे आगे

नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क से गुज़रा
क्यों कर कहूँ लो नाम न उस का मेरे आगे

इमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है कलीसा<ref>गिरजाघर
</ref> मेरे आगे

आशिक़ हूँ पे माशूक़ फ़रेबी<ref>माशूक को रिझाने का काम
</ref> है मेर काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे

ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते
आई शब-ए-हिजराँ<ref>विरह-रात्रि </ref> की तमन्ना मेरे आगे

है मौजज़न <ref>लहरेँ मारता हुआ
</ref>इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ<ref>रक्त का समुद्र
</ref> काश! यही हो
आता है अभी देखिये क्या-क्या मेरे आगे

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे
 
हमपेशा-ओ-हममशरब-ओ-हमराज़<ref>सहव्यवसायी, सहपंथी
</ref> है मेरा
'गा़लिब' को बुरा क्योँ कहो अच्छा मेरे आगे

शब्दार्थ
<references/>