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"आह को चाहिये इक उम्र असर होते तक / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक <br><br> | शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक <br><br> | ||
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13:40, 18 मई 2009 का अवतरण
आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
दामे-हर-मौज में हैं हल्क़-ए-सदकामे-निहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होने तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक
हम ने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होने तक
पर्तौ-ए-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक
यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शर<ref>चिंगारी का नृत्य
</ref> होने तक
ग़मे-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग <ref>म्रुत्यु के अतिरिक्त
</ref>इलाज
शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक
{KKMeaning}}