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"इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात / सुदर्शन फ़ाकिर" के अवतरणों में अंतर

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आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब
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उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया
  
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया<br>
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रोनेवालों से कह दो उनका भी रोना रोलें
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया<br><br>
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जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया
  
आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब<br>
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तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया<br><br>
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तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया
  
रोनेवालों से कह दो उनका भी रोना रोलें<br>
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एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें "फ़ाकिर"
जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया<br><br>
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हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया</poem>
 
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हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया<br><br>
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17:24, 19 मई 2009 के समय का अवतरण

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया

आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया

रोनेवालों से कह दो उनका भी रोना रोलें
जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया

तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया

एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें "फ़ाकिर"
हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया