भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
− | दर्द | + | दर्द मिन्नतकश-ए-दवा न हुआ<br> |
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ<br><br> | मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ<br><br> | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
कितने शीरीं हैं तेरे लब के रक़ीब<br> | कितने शीरीं हैं तेरे लब के रक़ीब<br> | ||
− | गालियाँ | + | गालियाँ खा के बेमज़ा न हुआ<br><br> |
है ख़बर गर्म उनके आने की<br> | है ख़बर गर्म उनके आने की<br> | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 27: | ||
ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा<br> | ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा<br> | ||
− | काम गर रुक | + | काम गर रुक गया रवा न हुआ<br><br> |
रहज़नी है कि दिलसितानी है<br> | रहज़नी है कि दिलसितानी है<br> | ||
− | + | ले के दिल, दिलसिताँ रवा न हुआ<br><br> | |
− | कुछ तो | + | कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं<br> |
आज 'ग़ालिब' ग़ज़लसरा न हुआ <br><br> | आज 'ग़ालिब' ग़ज़लसरा न हुआ <br><br> |
01:00, 22 मई 2009 का अवतरण
दर्द मिन्नतकश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ
जमा करते हो क्यों रक़ीबों को
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ
हम कहाँ क़िस्मत आज़माने जायें
तू ही जब ख़ंजर आज़मा न हुआ
कितने शीरीं हैं तेरे लब के रक़ीब
गालियाँ खा के बेमज़ा न हुआ
है ख़बर गर्म उनके आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ
क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
बंदगी में मेरा भला न हुआ
जान दी, दी हुई उसी की थी
हक़ तो यूँ है के हक़ अदा न हुआ
ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा
काम गर रुक गया रवा न हुआ
रहज़नी है कि दिलसितानी है
ले के दिल, दिलसिताँ रवा न हुआ
कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज 'ग़ालिब' ग़ज़लसरा न हुआ