"मनु-शतरूपा / राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'" के अवतरणों में अंतर
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16:09, 24 मई 2009 के समय का अवतरण
मनु-शतरूपा धन्य हैं पाया जीवन-सत्य।
जिन के तप से हो गयी आराधना अपत्य॥
हुई प्रतीक्षा फलवती, कई जन्म के बाद।
मनु-शतरूपा को मिला प्रभु का दिव्य प्रसाद॥
मिली साधना सिद्धि से, फूले मन के कुंज।
मनु-शतरूपा को मिला, दिव्य नेह का पुंज॥
ज्ञान-योग झुककर खड़े, इस इच्छा के द्वार।
जिस के कारण सृष्टि में, हुआ दिव्य अवतार॥
जिनके कारण हो सका, दिव्य निरूप सरूप।
शतरूपा है कल्पना मनु मन का प्रतिरूप॥
वर्तमान की कल्पना, जब तपती धर ध्यान।
स्वर्णिम आगत का तभी पाती है वरदान॥
राग रंग रस कामना, सब कुछ किया हविष्य।
मनु-शतरूपा ने तभी पाया दिव्य भविष्य॥
मनु-शतरूपा ने कहा, अब है कहां विकल्प।
'तुम समान सुत चाहिए प्रभु तप का संकल्प॥'
प्रकटे प्रभु आनन्दमय, हे तपमूर्ति प्रवीन।
मागों वर जो चाहिए साधक सिध्द अदीन॥
मानवता के भाल पर, लिखा दिव्य दाम्पत्य।
करके अलौकिक साधना दिया दिव्य अपत्य॥
जब जब मांगे साधना दर्शन का वैकल्प।
तब तब मिलता सिद्धि को दिव्य मधुर वात्सल्य॥