भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शेष सन्नाटा / विष्णु विराट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[विष्णु विराट]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=विष्णु विराट
 +
}}
 
[[Category:गीत]]
 
[[Category:गीत]]
[[Category:विष्णु विराट]]
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
 
शेष सन्नाटा बड़ा बेचैन करता
 
शेष सन्नाटा बड़ा बेचैन करता
  

16:24, 24 मई 2009 के समय का अवतरण

शेष सन्नाटा बड़ा बेचैन करता

उग रहा जंगल

भयावह-सा दिलों में।


वह हलाकू हो कि

या चंगेज हिटलर

उड़ गए बादल

धुंए के आंधियों में

सोच अपने स्वप्न हैं

पीयूष-वृष्टा

ग्रस्त लोग समस्त हैं

किन व्याधियों में?


थी जहां नूरेजहां

मुमताज की रंगीन खुशबू

गठरियां सूखे गुलाबों की मिलेंगी

उन किलों में।

गढ़ रहे गणराज्य वैशाली नगर में

बांध घुंघरू नगर बधुएं

नाचतीं हैं

हंस रही संभ्रांत विषकन्या

महल में

गांव भर की जन्मपत्री

बांचती हैं

हाथ से छूटे कबूतर देखकर

बूढ़ा शहनशाह

पीसता है दांत

गुर्राता शराबी महफ़िलों में।