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"निगाहों दिल का अफसाना / आनंद नारायण मुल्ला" के अवतरणों में अंतर
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ख़िरद की मंजिलें तय हो चुकी दिल का मुकाम आया । | ख़िरद की मंजिलें तय हो चुकी दिल का मुकाम आया । | ||
− | न जाने कितनी शम्मे गुल | + | न जाने कितनी शम्मे गुल हुईं कितने बुझे तारे, |
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तेरे होठों को जब छूता हुआ मुल्ला का जाम आया | | तेरे होठों को जब छूता हुआ मुल्ला का जाम आया | |
01:01, 28 मई 2009 का अवतरण
निगाहों दिल का अफ़साना करीब-ए-इख्तिताम आया ।
हमें अब इससे क्या आया शहर या वक्त-ए-शाम आया ।।
ज़बान-ए-इश्क़ पर एक चीख़ बनकर तेरा नाम आया,
ख़िरद की मंजिलें तय हो चुकी दिल का मुकाम आया ।
न जाने कितनी शम्मे गुल हुईं कितने बुझे तारे,
तब एक खुर्शीद इतराता हुआ बला-ए-बाम आया ।
इसे आँसू न कह एक याद अय्यामें गुलिश्ताँ है,
मेरी उम्रे खाँ को उम्रे रफ़्ता का सलाम आया ।
बेरहमन आब-ए-गंगा शैख कौशर ले उड़ा उससे,
तेरे होठों को जब छूता हुआ मुल्ला का जाम आया |