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"कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर

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ये कह के छेड़ती है हमें दिलगिरफ़्तगी <br>
 
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घबरा गये हैं आप तो बहर ही ले चलें <br><br>
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आ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें <br><br>
 
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19:40, 30 मई 2009 का अवतरण

कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें
आये हैं इस गली में तो पत्थर ही ले चलें

यूँ किस तरह कटेगा कड़ी धूप का सफ़र
सर पर ख़याल-ए-यार की चादर ही ले चलें

रंज-ए-सफ़र की कोई निशानी तो पास हो
थोड़ी सी ख़ाक-ए-कूचा-ए-दिलबर ही ले चलें

ये कह के छेड़ती है हमें दिलगिरफ़्तगी
घबरा गये हैं आप तो बाहर ही ले चलें

इस शहर-ए-बेचराग़ में जायेगी तू कहाँ
आ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें