भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक नीला आईना बेठोस / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह | |
+ | }} | ||
+ | |||
− | |||
एक नीला आईना | एक नीला आईना | ||
− | बेठोस-सी यह | + | बेठोस-सी यह चांदनी |
और अंदर चल रहा हूँ मैं | और अंदर चल रहा हूँ मैं |
18:31, 17 अप्रैल 2008 का अवतरण
एक नीला आईना
बेठोस-सी यह चांदनी
और अंदर चल रहा हूँ मैं
उसी के महातल के मौन में ।
मौन में इतिहास का
कन किरन जीवित, एक, बस ।
एक पल की ओट में है कुल जहान ।
आत्मा है
अखिल की हठ-सी ।
चाँदनी में घुल गए हैं
बहुत-से तारे, बहुत कुछ
घुल गया हूँ मैं
बहुत कुछ अब ।
रह गया-सा एक सीधा बिंब
चल रहा है जो
शांत इंगित-सा
न जाने किधर ।