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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>ये भी क्या शाम-ए-मुलाक़ात आई|लब पे मुश्किल से तेरी बात आई|
सुबह से चुप हैं तेरे हिज्र नसीब, हाय ये भी क्या होगा अगर रात शाम-ए-मुलाक़ात आईलब पे मुश्किल से तेरी बात आई|
बस्तियाँ छोड़ के बरसे बादल, सुबह से चुप हैं तेरे हिज्र नसीबकिस क़यामत की ये बरसात हाय क्या होगा अगर रात आई|
कोई जब मिल बस्तियाँ छोड़ के हुआ था रुख़सत, बरसे बादलदिल-ए-बेताब वही रात किस क़यामत की ये बरसात आई|
कोई जब मिल के हुआ था रुख़सतदिल-ए-बेताब वही रात आई साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ में 'नसिरनासिर', एक से एक नई रात आई|
</poem>
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