भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुसलसल बेकली दिल को रही है / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी }} Category:गज़ल मुसलसल बेकली दिल को रही है<br> मगर जी...) |
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
मगर जीने की सूरत तो रही है<br><br> | मगर जीने की सूरत तो रही है<br><br> | ||
− | मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा मारा<br> | + | मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा-मारा<br> |
ये बस्ती चैन से क्यों सो रही है<br><br> | ये बस्ती चैन से क्यों सो रही है<br><br> | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
ख़िज़ाँ पत्तों में छुप के रो रही है<br><br> | ख़िज़ाँ पत्तों में छुप के रो रही है<br><br> | ||
− | + | हमारे घर की दीवारों पे "नासिर"<br> | |
उदासी बाल खोले सो रही है<br><br> | उदासी बाल खोले सो रही है<br><br> |
16:52, 7 जून 2009 के समय का अवतरण
मुसलसल बेकली दिल को रही है
मगर जीने की सूरत तो रही है
मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा-मारा
ये बस्ती चैन से क्यों सो रही है
चल दिल से उम्मीदों के मुसाफ़िर
ये नगरी आज ख़ाली हो रही है
न समझो तुम इसे शोर-ए-बहाराँ
ख़िज़ाँ पत्तों में छुप के रो रही है
हमारे घर की दीवारों पे "नासिर"
उदासी बाल खोले सो रही है