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"दिल में इक लहर सी उठी है अभी / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर

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तेरी आवाज़ आ रही है अभी<br><br>
 
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शहर के बेचराग़ गलियों में<br>
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ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी<br><br>
 
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी<br><br>
  

17:13, 7 जून 2009 का अवतरण

दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी

शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी

कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोट भी नई है अभी

भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी

तू शरीक-ए-सुख़न नहीं है तो क्या
हम-सुख़न तेरी ख़ामोशी है अभी

याद के बे-निशाँ जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी

शहर की बेचराग़ गलियों में
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी

सो गये लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी

तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर में रात जागती है अभी

वक़्त अच्छा भी आयेगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी