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"कैधौँ कली बेला की चमेली सी चमक पर / केशव." के अवतरणों में अंतर

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16:29, 16 जून 2009 का अवतरण

कैधौँ कली बेला की चमेली सी चमक परै ,
कैधौं कीर कमल मे दाड़िम दुराए हैँ ।
कैधौँ मुकताहल महावर मे राखे रँगि ,
कैधौं मणि मुकुर मे सीकर सुहाए हैँ ।
कैधौं सातौँ मंडल के मंडल मयंक मध्य ,
बीजुरी के बीज सुधा सींचि कै उराए हैँ ।
केसौदास प्यारी के बदन में रदन छवि ,
सोरहो कला को काटि बत्तिस बनाए हैँ ।


केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।