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"सोने की एक लता तुलसी बन क्योँ बरनोँ सुनि बुद्धि सकै छ्वै / केशव." के अवतरणों में अंतर
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सोने की एक लता तुलसी बन क्योँ बरनोँ सुनि बुद्धि सकै छ्वै । | सोने की एक लता तुलसी बन क्योँ बरनोँ सुनि बुद्धि सकै छ्वै । | ||
केशव दास मनोज मनोहर ताहि फले फल श्री फल से द्वै । | केशव दास मनोज मनोहर ताहि फले फल श्री फल से द्वै । | ||
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तापर एक सुवा शुभ तापर खेलत बालक खंञन के द्वै । | तापर एक सुवा शुभ तापर खेलत बालक खंञन के द्वै । | ||
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16:30, 16 जून 2009 का अवतरण
सोने की एक लता तुलसी बन क्योँ बरनोँ सुनि बुद्धि सकै छ्वै ।
केशव दास मनोज मनोहर ताहि फले फल श्री फल से द्वै ।
फूलि सरोज रह्यो तिन ऊपर रूप निरूपन चित्त चले चवै ।
तापर एक सुवा शुभ तापर खेलत बालक खंञन के द्वै ।
केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।