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"जौँ हौँ कहौँ रहिये तो प्रभुता प्रगट होत / केशव." के अवतरणों में अंतर
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− | जौँ हौँ कहौँ रहिये तो प्रभुता प्रगट होत , | + | जौँ हौँ कहौँ रहिये तो प्रभुता प्रगट होत, |
− | चलन कहौँ तौ हित हानि नाहीँ | + | चलन कहौँ तौ हित हानि नाहीँ सहनो। |
− | भावै सो करहु तौ उदास भाव प्राण नाथ , | + | भावै सो करहु तौ उदास भाव प्राण नाथ, |
− | साथ लै चलहु कैसो लोक लाज | + | साथ लै चलहु कैसो लोक लाज बहनो। |
− | केशोदास की सोँ तुम सुनहु छबीले लाल , | + | केशोदास की सोँ तुम सुनहु छबीले लाल, |
− | चले ही बनत जो पै नाहीँ राज | + | चले ही बनत जो पै नाहीँ राज रहनो। |
− | जैसिये सिखाओ सीख तुम ही सुजान प्रिय , | + | जैसिये सिखाओ सीख तुम ही सुजान प्रिय, |
− | तुमहिँ चलत मोहि जैसो कछु | + | तुमहिँ चलत मोहि जैसो कछु कहनो। |
− | '''केशव | + | '''केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है। |
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16:31, 16 जून 2009 के समय का अवतरण
जौँ हौँ कहौँ रहिये तो प्रभुता प्रगट होत,
चलन कहौँ तौ हित हानि नाहीँ सहनो।
भावै सो करहु तौ उदास भाव प्राण नाथ,
साथ लै चलहु कैसो लोक लाज बहनो।
केशोदास की सोँ तुम सुनहु छबीले लाल,
चले ही बनत जो पै नाहीँ राज रहनो।
जैसिये सिखाओ सीख तुम ही सुजान प्रिय,
तुमहिँ चलत मोहि जैसो कछु कहनो।
केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।