भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिल्ली-1984 / गिरधर राठी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गिरिधर राठी |संग्रह= निमित्त / गिरिधर राठी }} क्या तुमन...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) छो (दिल्ली-1984 / गिरिधर राठी का नाम बदलकर दिल्ली-1984 / गिरधर राठी कर दिया गया है) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:26, 24 जून 2009 का अवतरण
क्या तुमने देखे धू-धू करते मकान?
हाँ मैं ने देखे ।
और शहर पर मंडराता धुआँ?
हाँ ।
क्या तुमने सुना शोर?
हाँ मैं ने सुना ।
भागते हुए हुजूम?
हाँ ।
और वे जो भाग नहीं सके?
नहीं \ कुछ दिनों बाद
देखे मैंने ढेर राख के
जिन में शायद दबी थीं कुछ हड्डियाँ
कुछ नर-कंकाल ।
फिर कुछ आँकड़े देखे
कुछ ब्यौरे सुने
चश्मदीद ।
उन दिनों मैं पिता की शरण में था
उस पिता की, जो सब का था
और उन की वसीयत में
खोज रहा था अपना हिस्सा