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"जाते जाते वो मुझे / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया <br>
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उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया <br><br>
 
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया <br><br>
  

19:32, 24 जून 2009 का अवतरण

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया

उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया

उस से मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया

सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझ को एक करती बादबानी दे गया

ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया