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"दिल में महक रहे हैं / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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19:32, 24 जून 2009 का अवतरण
दिल में महक रहें हैं किसी आरज़ू के फूलपलकों में खिलने वाले हैं शायद लहू के फूल
अब तक है कोई बात मुझे याद हर्फ़ हर्फ़
अब तक मैं चुन रहा हूँ किसी गुफ़्तगू के फूल
कलियाँ चटक रही थी कि आवाज़ थी कोई
अब तक सम'अतों में है इक ख़ुश-गुलू के फूल
मेरे लहू का रंग है हर नोक-ए-ख़ार पर
सेहरा में हर तरफ़ है मेरी जुस्तजू के फूल
दीवाने कल जो लोग थे फूलों के इश्क़ में
अब उन के दामनों में भरे हैं रफ़ू के फूल