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"दुश्वारी / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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मैं भूल जाऊँ अब यही मुनासिब है <br> | मैं भूल जाऊँ अब यही मुनासिब है <br> |
19:34, 24 जून 2009 का अवतरण
मैं भूल जाऊँ अब यही मुनासिब है
मगर भूलना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँ
कमबख़्त
भुला सका न ये सिलसिला जो था ही नहीं
वो इक ख़याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो एक बात
जो मैं कह नहीं सका तुम से
वो एक रब्त
वो हम में कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब
जो कभी हुआ ही नहीं
अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए
तुम्हें भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं