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"एक यात्रा के दौरान / पंद्रह / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर

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आश्चर्य ! वह स्त्री और बच्चा भी  
 
आश्चर्य ! वह स्त्री और बच्चा भी  

01:54, 16 जून 2008 का अवतरण


आश्चर्य ! वह स्त्री और बच्चा भी

अकेले खड़े हैं उधर ।


क्या मैं कुछ कर सकता हूँ उनके लिए ?

स्त्री मुझे निरीह आँखों से देखती है -

“वो आते होंगे, मेरे लिए भी ......”


कुछ दूर चल कर

ठहर गया हूं –

उसके लिए ?

या अपने लिए ?

देखता हूं उसकी आंखों में

जो घिर आई थी एक दुश्चिन्ता-सी

एक सरल कृतज्ञता में बदल जाती ।