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"विस्मृत मित्र के लिए कुछ पंक्तियाँ-4 / शुभा" के अवतरणों में अंतर

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02:13, 26 जून 2009 के समय का अवतरण

मनुष्यता को खारिज करते हुए हम अब
स्त्री और पुरुष बनना चाहते हैं
कभी स्त्री-पुरुष को खारिज करके
बने थे मनुष्य भी
हम ऐसे मनुष्य नहीं बन सकते जो स्त्री हो न पुरुष

तो मनुष्यों में ही होते हैं स्त्री-पुरुष
कहते हैं एक कोमल है दूसरा कठोर
कहते हैं एक दयालु है दूसरा दम्भी
कहते हैं एक ममतालु है दूसरा निर्मोही

हम जानते हैं
जो कहने की बातें हैं
तो हम मिलकर असलियत सिद्ध क्यों नहीं करते।