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"ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति मान घटे पर गेह के जाये / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर
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ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति मान घटे पर गेह के जाये ।
पाप घटे कछु पुन्य किये अरु रोग घटे कछु औषध खाये ।
प्रीति घटे कछु माँगन तें अरु नीर घटे रितु ग्रीषम आये ।
नारि प्रसंग ते जोर घटे जम त्रास घटे हरि के गुन गाये ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।