भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खुदी का नशा चढ़ा आपमें रहा न गया / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} | ||
− |
10:04, 9 जुलाई 2009 का अवतरण
खुदी का नशा चढ़ा आप में रहा न गया।
ख़ुदा बने थे ‘यगाना’ मगर बना न गया॥
गुनाहे-ज़िंदादिली कहिये या दिल-आज़ारी<ref>सताना</ref>।
किसी पै हँस लिये इतना कि फिर हँसा न गया॥
समझते क्या थे, मगर सुनते थे तर्रानाये-दर्द।
समझ में आने लगा जब तो फिर सुना न गया॥
पुकारता रहा किस-किसको डूबनेवाला।
ख़ुदा थे इतने, मग्र कोई आड़े आ न गया॥
शब्दार्थ
<references/>