भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पांच शे’र / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल। ग़म खाते-खाते मुँह का मज़ा ...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल। | शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल। | ||
पंक्ति 7: | पंक्ति 6: | ||
इसी फ़रेब ने मारा कि कल है कितनी दूर। | इसी फ़रेब ने मारा कि कल है कितनी दूर। | ||
− | एक आज-कल में अबस<>व्यर्थ</> दिन गँवायें है क्या-क्या। | + | एक आज-कल में अबस<ref>व्यर्थ</ref> दिन गँवायें है क्या-क्या। |
− | ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा<>मुनासिब</> है। | + | ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा<ref>मुनासिब</ref> है। |
− | वो लगज़िशों पै<>लड़खडा़ने पर</> मेरी मुसकराये है क्या-क्या॥ | + | वो लगज़िशों पै<ref>लड़खडा़ने पर</ref> मेरी मुसकराये है क्या-क्या॥ |
− | बस एक नुक्तये-फ़र्ज़ी का<>कल्पना-बिंदु का</> नाम है काबा। | + | बस एक नुक्तये-फ़र्ज़ी का<ref>कल्पना-बिंदु का</ref> नाम है काबा। |
− | किसी को मरकज़े-तहक़ीक़ का<>खोज के लक्ष्य का</> पता न चला॥ | + | किसी को मरकज़े-तहक़ीक़ का<ref>खोज के लक्ष्य का</ref> पता न चला॥ |
− | उमीदो-बीमने<>आशा-निराशा</> मारा मुझे दुराहे पर। | + | उमीदो-बीमने<ref>आशा-निराशा</ref> मारा मुझे दुराहे पर। |
कहाँ के दैरो-हरम? घर का रास्ता न मिला॥ | कहाँ के दैरो-हरम? घर का रास्ता न मिला॥ |
09:33, 10 जुलाई 2009 का अवतरण
शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल।
ग़म खाते-खाते मुँह का मज़ा तक बिगड़ गया॥
इसी फ़रेब ने मारा कि कल है कितनी दूर।
एक आज-कल में अबस<ref>व्यर्थ</ref> दिन गँवायें है क्या-क्या।
ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा<ref>मुनासिब</ref> है।
वो लगज़िशों पै<ref>लड़खडा़ने पर</ref> मेरी मुसकराये है क्या-क्या॥
बस एक नुक्तये-फ़र्ज़ी का<ref>कल्पना-बिंदु का</ref> नाम है काबा।
किसी को मरकज़े-तहक़ीक़ का<ref>खोज के लक्ष्य का</ref> पता न चला॥
उमीदो-बीमने<ref>आशा-निराशा</ref> मारा मुझे दुराहे पर।
कहाँ के दैरो-हरम? घर का रास्ता न मिला॥
शब्दार्थ
<references/>