भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक लंबी देह वाला दिन / तारादत्त निर्विरोध" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
कवि: [[डा तारादत्त निर्विरोध]]
 +
[[Category:कविताएँ]]
 +
[[Category:गीत]]
 +
[[Category:डा तारादत्त निर्विरोध]]
 +
 +
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 +
 
थक गया हर शब्द
 
थक गया हर शब्द
  

22:58, 12 सितम्बर 2006 का अवतरण

कवि: डा तारादत्त निर्विरोध

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

थक गया हर शब्द

अपनी यात्रा में,

आंकड़ों को जोड़ता दिन

दफ्तरों तक रह गया।


मन किसी अंधे कुएं में

खोजने को जल

कागज़ों में फिर गया दब,

कलम का सूरज

जला दिन भर

मगर है डूबने को अब।

एक क्षण कोई

प्रबोली सांझ के

कान में यह बात आकर

कह गया,

एक पूरा दिन,

दफ्तरों तक रह गया।


सुख नहीं लौटा

अभी तक काम से,

त्रासदी की देख गतिविधियां

बहुत चिढ़ है आदमी को

आदमी के नाम से।

एक उजली आस्था का भ्रम

फिर किसी दीवार जैसा ढह गया,

एक लंबी देह वाला दिन

दफ्तरों तक रह गया।