भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एलान-ए-जंग / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अली सरदार जाफ़री }} गांधी जी जंग का एलान कर दिया बातिल स...)
 
छो
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
आज़ादी-ए-हयात का सामान कर दिया
 
आज़ादी-ए-हयात का सामान कर दिया
  
शेख और बिरहमन में बढ़ाया इत्तिहाद
+
शेख़
 +
और बिरहमन में बढ़ाया इत्तिहाद
  
 
गोया उन्हें दो कालिब-ओ-यकजान कर दिया
 
गोया उन्हें दो कालिब-ओ-यकजान कर दिया
  
जुल्मो-सितम की नाव डुबोने के वास्ते
+
ज़ु
 +
ल्मो-सितम की नाव डुबोने के वास्ते
  
कतरे को आंखों-आंखों में तूफ़ान कर दिया
+
क़
 +
तरे को आंखों-आंखों में तूफ़ान कर दिया

09:10, 12 जुलाई 2009 का अवतरण

गांधी जी जंग का एलान कर दिया

बातिल से हक़ को दस्त-ओ-गरीबान कर दिया

हिन्दुस्तान में इक नयी रूह फूंककर

आज़ादी-ए-हयात का सामान कर दिया

शेख़

और बिरहमन में बढ़ाया इत्तिहाद

गोया उन्हें दो कालिब-ओ-यकजान कर दिया

ज़ु ल्मो-सितम की नाव डुबोने के वास्ते

क़ तरे को आंखों-आंखों में तूफ़ान कर दिया