भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दो कतआ़त / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: सब तेरे सिवा काफ़िर, आख़िर इसका मतलब क्या! सिर फिरा दे इन्साँ का ऐ...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=यगाना चंगेज़ी | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
सब तेरे सिवा काफ़िर, आख़िर इसका मतलब क्या! | सब तेरे सिवा काफ़िर, आख़िर इसका मतलब क्या! |
18:43, 13 जुलाई 2009 के समय का अवतरण
सब तेरे सिवा काफ़िर, आख़िर इसका मतलब क्या!
सिर फिरा दे इन्साँ का ऐसा ख़ब्ते-मज़हब क्या!!
मजाल थी कोई देखे तुम्हें नज़र भरकर।
यह क्या है आज पडे़ हो मले-दले क्योंकर॥