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"जीवन की कर्मभूमि / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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सबकी सुनना ,अपनी कहना ।
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सबकी सुनना, अपनी कहना।
  
 
सुख जो पाए हम मुस्काए,
 
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रुककर पानी सड़ जाता है,
 
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नदी सरीखे निशदिन बहना
 
नदी सरीखे निशदिन बहना
[21जून,2009 ]
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21:13, 26 जुलाई 2009 का अवतरण

जीवन की इस कर्मभूमि में,
ठीक नहीं है बैठे रहना।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना, अपनी कहना।

सुख जो पाए हम मुस्काए,
आँसू आए उनको सहना।
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना