भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यूँ उठा करती है सावन की घटा / सीमाब अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमाब अकबराबादी |संग्रह= }} <poem> यूँ उठा करती है सा...)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:06, 28 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

 

यूँ उठा करती है सावन की घटा।
जैसे उठती हो जवानी झूमके॥

जिस जगह से ले चला था राहबर।
हम वहीं फिर आ गए हैं घूमके॥

आ गया ‘सीमाब’ जाने क्या ख़याल?
ताक़ में रख दी सुराही चूमके॥