भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दई से जो पेट छिपाएँ / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> दाई से जो पेट छुपाए बाद में उतना ही पछताए पंछी मिलकर ज़ोर लगाए...)
(कोई अंतर नहीं)

00:20, 31 जुलाई 2009 का अवतरण

दाई से जो पेट छुपाए
बाद में उतना ही पछताए

पंछी मिलकर ज़ोर लगाएं
जाल भी उड़कर साथ उड़ाए

परछाईं पर भौंके कुत्ते
अपने मुँह का ग्रास गंवाए

अपने घर की कीमत पर क्यों
बंदर को चिड़्या समझाएं

आपस में जब ठीक न बोलें
पंचायत में मुँह लटकाए

पेट भरे हैं आँखे भूख़ी
सोच समझकर उन्हें बुलाएं

खास ठिकाना पाकर पलता
राह गली क्यों प्रेम कमाए