भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कभी उबाल कर ठंडा किया शरारों ने / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> आज सुबह से धूप गरमाने लगी पर्वतों की बर्फ पिघलाने लगी बंद है गो...)
(कोई अंतर नहीं)

01:25, 1 अगस्त 2009 का अवतरण

आज सुबह से धूप गरमाने लगी
पर्वतों की बर्फ पिघलाने लगी

बंद है गो द्वार कारागार का
पर झरोखों से हवा आने लगी

फिर मुरम्मत हो रही है छतरियाँ
बादरी आकाश पर छाने लगी

छिड़ गई चर्चा कहीं से भूख की
गाँव की चौपाल घबराने लगी

क्या करें हदबंदियों पर अब यकीं
बाड़ ही जब खेत को खाने लगी

इतना गहरा तो हुआ तल कूप का
लौट कर अपनी सदा आने लगी

कब तलक तेरा भरम पाले रहूँ
नींव से दिवार बतियाने लगी

जो दुहाई दे रहे थे प्रेम की
खौफ उनसे रूह अब खाने लगी