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"न फ़रमाओ, "नहीं है आदमी में ताबे-नज़्ज़ारा" / सीमाब अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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14:54, 1 अगस्त 2009 के समय का अवतरण



न फ़रमाओ, "नहीं है आदमी में ताबे-नज़्ज़ारा"।
सँभल जाओ अब उठती है निगाहे-नातवाँ मेरी॥

मेरी हौरत पै वो तनकी़द की तकलीफ़ करते हैं।
जिन्हें यह भी नहीं मालूम नज़रें हैं कहाँ मेरी॥