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"ऐसे भी हमने देखे हैं दुनिया में इनक़लाब / सीमाब अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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18:56, 4 अगस्त 2009 के समय का अवतरण


ऐसे भी हमने देखे हैं दुनिया में इनक़लाब।
पहले जहाँ क़फ़स था, वहाँ आशियाँ बना॥

सारे चमन को मैं तो समझता हूँ अपना घर।
तू आशियाँपरस्त है, जा, आशियाँ बना॥