भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इश्क़ है सहल, मगर हम हैं वो दुश्वार-पसन्द / सीमाब अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमाब अकबराबादी |संग्रह= }} Category:गज़ल <poem> इश्क़ ह...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:05, 4 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
इश्क़ है सहल, मगर हम हैं वो दुश्वार-पसन्द।
कारे-आसाँ को भी दुशवार बना लेते हैं॥
""" """ """
वो ख़ुद भी समझते नहीं मुझको सायल।
कुछ इस शान से गोद फैला रहा हूँ॥