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"दिल को तो कहीं और लगाए हुए थे लोग / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

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दिल को तो कहीं और लगाए हुए थे लोग
 
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'''मोटा पाठ'''

00:25, 5 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

दिल को तो कहीं और लगाए हुए थे लोग
पर आँख आप ही से मिलाए हुए थे लोग

अपना सुराग मिल नहीं पाया तमाम उम्र
चिंतन पर इस कदर भी तो छाए हुए थे लोग

जब भी हमारी नाव भंवर में उलझ गई
तब अलविदा में हाथ उठाए हुए थे लोग

आदाब जब मिला तो सभी दाद बन गई
जो उंगलियाँ हमीं पे उठाए हुए थे लोग

आदाब जब मिला तो सभी दाद बन गई
जो उंगलियाँ हमीं पे उठाए हुए थे लोग

दिन-रात के हिसाब में टूटे तो थे मगर
अपनी कता में प्रेम चलाए हुए थे लोग

मोटा पाठ