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"इतना वह मजबूर कहाँ है / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर
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उतना वह मजबूर कहाँ है | उतना वह मजबूर कहाँ है |
07:22, 5 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
उतना वह मजबूर कहाँ है
इतना बड़ा फितूर कहाँ है
जिनता है टूटन का ख़तरा
उतना चकनाचूर कहाँ है
साथ निभाएं गर ये घुटने
फिर मंज़िल भी दूर कहाँ है
ओ दीवारों के रंगसाज़ी
नींव का वह मज़दूर कहाँ है
चोर लगे तफ्तीसें करने
मिलना कोई कसूर कहाँ है
जितना तुम कहते हो उसको
उतना वह मग़रूर कहाँ है
जो सच झूठ पे चलने वाले
तेरा वह दस्तूर कहाँ है
प्रेम भरे उन गीतों वाला
चहरों पर भी नूर कहाँ