"दुख की लहर ने छेड़ा होगा / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मोती जैसी शक़्ल बनाकर | |
− | + | आईने को तकता होगा | |
− | + | शाम हुई अब तू भी शायद | |
− | + | आपने घर को लौटा होगा | |
− | + | नीली धुंधली ख़ामोशी में | |
− | + | तारों की धुन सुनता होगा | |
− | + | मेरा साथी शाम का तारा | |
− | + | तुझ से आँख मिलाता होगा | |
− | + | शाम के चलते हाथ ने तुझ को | |
− | तुझ | + | मेरा सलाम तो भेजा होगा |
− | + | प्यासी कुर्लाती कून्जूँ ने | |
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− | + | मैं तो आज बहुत रोया हूँ | |
− | + | तू भी शायद रोया होगा | |
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17:04, 10 अगस्त 2009 का अवतरण
दुख की लहर ने छेड़ा होगा
याद ने कंकड़ फेंका होगा
आज तो मेरा दिल कहता है
तू इस वक़्त अकेला होगा
मेरे चूमे हुए हाथों से
औरों को ख़त लिखता होगा
भीग चलीं अब रात की पलकें
तू अब थक कर सोया होगा
रेल की गहरी सीटी सुन कर
रात का जंगल गूँजा होगा
शहर के ख़ाली स्टेशन पर
कोई मुसाफ़िर उतरा होगा
आँगन में फिर चिड़ियाँ बोलें
तू अब सो कर उठा होगा
यादों की जलती शबनम से
फूल सा मुखड़ा धोया होगा
मोती जैसी शक़्ल बनाकर
आईने को तकता होगा
शाम हुई अब तू भी शायद
आपने घर को लौटा होगा
नीली धुंधली ख़ामोशी में
तारों की धुन सुनता होगा
मेरा साथी शाम का तारा
तुझ से आँख मिलाता होगा
शाम के चलते हाथ ने तुझ को
मेरा सलाम तो भेजा होगा
प्यासी कुर्लाती कून्जूँ ने
मेरा दुख तो सुनाया होगा
मैं तो आज बहुत रोया हूँ
तू भी शायद रोया होगा
"नासिर" तेरा मीत पुराना
तुझ को याद तो आता होगा