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"जब लगे ज़ख़्म तो / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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फूल बन जाती हैं दहके हुए शोलों की लवें
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कम नहीं नशे में जाड़े की गुलाबी रातें
शर्त ये है के उन्हें ख़ूब हवा दी जाये<br><br>
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और अगर तेरी जवानी भी मिला दी जाये
  
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और अगर तेरी जवानी भी मिला दी जाये<br><br>
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चन्द लफ़्ज़ों में कोई आह छुपा दी जाये
 
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चन्द लफ़्ज़ों में कोई आह छुपा दी जाये<br><br>
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18:18, 10 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

जब लगे ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाये
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाये

तिश्नगी कुछ तो बुझे तिश्नालब-ए-ग़म की
इक नदी दर्द के शहरों में बहा दी जाये

दिल का वो हाल हुआ ऐ ग़म-ए-दौराँ के तले
जैसे इक लाश चट्टानों में दबा दी जाये

हम ने इंसानों के दुख दर्द का हल ढूँढ लिया
क्या बुरा है जो ये अफ़वाह उड़ा दी जाये

हम को गुज़री हुई सदियाँ तो न पहचानेंगी
आने वाले किसी लम्हे को सदा दी जाये

फूल बन जाती हैं दहके हुए शोलों की लवें
शर्त ये है के उन्हें ख़ूब हवा दी जाये

कम नहीं नशे में जाड़े की गुलाबी रातें
और अगर तेरी जवानी भी मिला दी जाये

हम से पूछो ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या है
चन्द लफ़्ज़ों में कोई आह छुपा दी जाये