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"तरल मोती से नयन भरे / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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तरल मोती से नयन भरे!
 
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मानस से ले, उटे स्नेह-घन,
तरल मोती से नयन भरे!<br>
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कसक-विद्यु पुलकों के हिमकण,
मानस से ले, उटे स्नेह-घन,<br>
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सुधि-स्वामी की छाँह पलक की सीपी में उतरे!
कसक-विद्यु पुलकों के हिमकण,<br>
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सित दृग हुए क्षीर लहरी से,
सुधि-स्वामी की छाँह पलक की सीपी में उतरे!<br>
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सुखे पुलिनों सी वरुणी से फेनिल फूल झरे!
तारे मरकत-नील-तरी से,<br>
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पारद से अनबींधे मोती,
सुखे पुलिनों सी वरुणी से फेनिल फूल झरे!<br>
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साँस इन्हें बिन तार पिरोती,
पारद से अनबींधे मोती,<br>
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जग के चिर श्रृंगार हुए, जब रजकण में बिखरे!
साँस इन्हें बिन तार पिरोती,<br>
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क्षार हुए, दुख में मधु भरने,
जग के चिर श्रृंगार हुए, जब रजकण में बिखरे!<br>
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तपे, प्यास का आतप हरने,
क्षार हुए, दुख में मधु भरने,<br>
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इनसे घुल कर धूल भरे सपने उजले निखरे!</poem>
तपे, प्यास का आतप हरने,<br>
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इनसे घुल कर धूल भरे सपने उजले निखरे!<br><br>
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20:08, 10 अगस्त 2009 का अवतरण

तरल मोती से नयन भरे!
मानस से ले, उटे स्नेह-घन,
कसक-विद्यु पुलकों के हिमकण,
सुधि-स्वामी की छाँह पलक की सीपी में उतरे!
सित दृग हुए क्षीर लहरी से,
तारे मरकत-नील-तरी से,
सुखे पुलिनों सी वरुणी से फेनिल फूल झरे!
पारद से अनबींधे मोती,
साँस इन्हें बिन तार पिरोती,
जग के चिर श्रृंगार हुए, जब रजकण में बिखरे!
क्षार हुए, दुख में मधु भरने,
तपे, प्यास का आतप हरने,
इनसे घुल कर धूल भरे सपने उजले निखरे!