भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कहने सुनने से ज़रा पास आके बैठ गए / नज़्म तबा तबाई" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़्म तबा तबाई }} कहने सुनने से ज़रा पास आके बैठ ...)
(कोई अंतर नहीं)

19:31, 16 अगस्त 2009 का अवतरण

कहने सुनने से ज़रा पास आके बैठ गये। निगाह फेर के त्योरी चढ़ा के बैठ गये॥


निगाहे-यास मेरी काम कर गई अपना। रुलाके उट्ठे थे वो मुस्करा के बैठ गये॥


</poem>