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"पसे-मर्ग मेरे मजार पर / ज़फ़र" के अवतरणों में अंतर

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पसे-मर्ग मेरे मजार पर जो दिया किसी ने जला दिया ।
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उसे आह! दामन-ए-बाद ने सरेशाम ही से बुझा दिया ।। 
  
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कहीं जावे उसका दिल दहल, मेरी लाश पर से हटा दिया ।   
 
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मेरी आँख झपकी थी एक पल, मेरे दिल ने चाहा कि उसके चल,
 
मेरी आँख झपकी थी एक पल, मेरे दिल ने चाहा कि उसके चल,
 
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दिल-ए-बेक़रार ने ओ मियाँ! वहीं चुटकी लेके जगा दिया ।   
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मैंने दिल दिया, मैंने जान दी, मगर आह तूने न क़द्र की,
 
 
किसी बात को जो कभी कहा, उसे चुटकियों से उड़ा दिया ।
 
किसी बात को जो कभी कहा, उसे चुटकियों से उड़ा दिया ।
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21:08, 20 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

पसे-मर्ग मेरी मजार पर जो दिया किसी ने जला दिया ।
उसे आह! दामन-ए-बाद ने सरेशाम ही से बुझा दिया ।।

मुझे दफ़्न करना तू जिस घड़ी, तो ये उससे कहना कि ऐ परी,
वो जो तेरा आशिक़-ए-जार था, तह-ए-ख़ाक उसको दबा दिया ।

दम-ए-ग़ुस्ल से मेरे पेशतर उसे हमदमों ने ये सोचकर,
कहीं जावे उसका दिल दहल, मेरी लाश पर से हटा दिया ।

मेरी आँख झपकी थी एक पल, मेरे दिल ने चाहा कि उसके चल,
दिल-ए-बेक़रार ने ओ मियाँ! वहीं चुटकी लेके जगा दिया ।

मैंने दिल दिया, मैंने जान दी, मगर आह तूने न क़द्र की,
किसी बात को जो कभी कहा, उसे चुटकियों से उड़ा दिया ।