भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी / ज़फ़र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बहादुर शाह ज़फ़र |संग्रह= }} यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा ...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 +
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था
 +
लायक़-ए-पा-बोस-ए-जाँ क्या हिना थी, मैं न था
  
यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था <br>
+
हाथ क्यों बाँधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआ
लायक़-ए-पा-बोस-ए-जाँ क्या हिना थी मैं न था <br><br>
+
ये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना थी, मैं न था  
  
हाथ क्यों बाँधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआ <br>
+
मैंने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न्--शबाब
ये सरापा शोख़ी--रंग-ए-हिना थी मैं न था <br><br>
+
हँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी, मैं न था  
  
मैं ने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न्-ओ-शबाब<br>
+
मैं सिसकता रह गया और मर गये फ़रहाद-ओ-क़ैस  
हँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी मैं न था <br><br>
+
क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी, मैं न था
 
+
</poem>
मैं सिसकता रह गया और मर गये फ़रहाद-ओ-क़ैस <br>
+
क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी मैं न था
+

21:21, 20 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था
लायक़-ए-पा-बोस-ए-जाँ क्या हिना थी, मैं न था

हाथ क्यों बाँधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआ
ये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना थी, मैं न था

मैंने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न्-ओ-शबाब
हँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी, मैं न था

मैं सिसकता रह गया और मर गये फ़रहाद-ओ-क़ैस
क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी, मैं न था