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"बेंदी / जगदीश गुप्त" के अवतरणों में अंतर

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उगी गोरे भला पर बेंदी!
 
उगी गोरे भला पर बेंदी!
एक छोटे दारे में लालिमा इतनी बिथुरती,
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एक छोटे दायरे में लालिमा इतनी बिथुरती,
 
बांध किसने दी।
 
बांध किसने दी।
  
 
नहा केसर के सरोवर में,
 
नहा केसर के सरोवर में,
 
ज्यों गुलाबी चांद उग आया।
 
ज्यों गुलाबी चांद उग आया।
अनछुई-सी पांखुरी रक्ताभ पाटल की,
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अनछुई-सी पाँखुरी रक्ताभ पाटल की,
 
रक्तिमा जिसकी, शिराओं के
 
रक्तिमा जिसकी, शिराओं के
 
सिहरते वेग में,
 
सिहरते वेग में,
 
झनकार बनकर खो गई।
 
झनकार बनकर खो गई।
भुनहरे के लहकते रवि की
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भुरहरे के लहकते रवि की
 
विभा ज्यों फूट निकली,
 
विभा ज्यों फूट निकली,
 
चीरती-सी कोर हलके पीत बादल की,
 
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अलक्तक की बूंद
 
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झिलमिल : स्फटिक के तल में।
 
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21:47, 21 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

उगी गोरे भला पर बेंदी!
एक छोटे दायरे में लालिमा इतनी बिथुरती,
बांध किसने दी।

नहा केसर के सरोवर में,
ज्यों गुलाबी चांद उग आया।
अनछुई-सी पाँखुरी रक्ताभ पाटल की,
रक्तिमा जिसकी, शिराओं के
सिहरते वेग में,
झनकार बनकर खो गई।
भुरहरे के लहकते रवि की
विभा ज्यों फूट निकली,
चीरती-सी कोर हलके पीत बादल की,
रात केशों में सिमटकर सो गई।
अरुन इंदीवर खिला, ईंगूर पराग भरा
सुनहले रूप के जल में
अलक्तक की बूंद
झिलमिल : स्फटिक के तल में।