भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मौन न अपने से टूटेगा / नचिकेता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंशु मालवीय }} <poem> दिन कैसे बदलेंगे हवा नहीं बदली ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=नचिकेता |
}} | }} | ||
+ | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
दिन कैसे बदलेंगे | दिन कैसे बदलेंगे |
17:57, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
दिन कैसे बदलेंगे
हवा नहीं बदली तो
खिड़की, रोशनदान खुले
पर, घनी उमस है
बदहवास मन में
बेचैनी गयी अड़स है
खुशबू नहीं मिलेगी
अगर न खिली कली तो
आसमान का मौन
न अपने से टूटेगा
नमी बिना क्यों अंकुर
बीहन में फूटेगा
वर्षा होगी
अगर घिरी काली बदली तो
बिना कंठ खोले ही
क्या विरहा ठनकेगा
बिना कठिन संघर्ष
न यह मौसम बदलेगा
सूत कतेंगे
अगर मिले रुई
तकली तो।