भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ये दिन बहार के / जोश मलीहाबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=जोश मलीहाबादी | |रचनाकार=जोश मलीहाबादी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
− | ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके | + | <poem> |
− | कि ग़ुंचे खिल तो सके खिल के मुस्कुरा न सके | + | ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके |
+ | कि ग़ुंचे खिल तो सके खिल के मुस्कुरा न सके | ||
− | मेरी तबाही दिल पर तो रहम खा न सकी | + | मेरी तबाही दिल पर तो रहम खा न सकी |
− | जो | + | जो रोशनी में रहे रोशनी को पा न सके |
− | न जाने आह! कि उन आँसूओं पे क्या गुज़री | + | न जाने आह! कि उन आँसूओं पे क्या गुज़री |
− | जो दिल से आँख तक आये मिश्गाँ तक आ न सके | + | जो दिल से आँख तक आये मिश्गाँ तक आ न सके |
− | रहें ख़ुलूस-ए-मुहब्बत के हादसात जहाँ | + | रहें ख़ुलूस-ए-मुहब्बत के हादसात जहाँ |
− | मुझे तो क्या मेरे नक़्श-ए-क़दम मिटा न सके | + | मुझे तो क्या मेरे नक़्श-ए-क़दम मिटा न सके |
− | करेंगे मर के बक़ा-ए-दवाम क्या हासिल | + | करेंगे मर के बक़ा-ए-दवाम क्या हासिल |
− | जो ज़िंदा रह के मुक़ाम-ए-हयात पा न सके | + | जो ज़िंदा रह के मुक़ाम-ए-हयात पा न सके |
− | नया ज़माना बनाने चले थे दीवाने | + | नया ज़माना बनाने चले थे दीवाने |
− | नई ज़मीं, नया आसमाँ बना न सके < | + | नई ज़मीं, नया आसमाँ बना न सके |
+ | </poem> |
19:57, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके
कि ग़ुंचे खिल तो सके खिल के मुस्कुरा न सके
मेरी तबाही दिल पर तो रहम खा न सकी
जो रोशनी में रहे रोशनी को पा न सके
न जाने आह! कि उन आँसूओं पे क्या गुज़री
जो दिल से आँख तक आये मिश्गाँ तक आ न सके
रहें ख़ुलूस-ए-मुहब्बत के हादसात जहाँ
मुझे तो क्या मेरे नक़्श-ए-क़दम मिटा न सके
करेंगे मर के बक़ा-ए-दवाम क्या हासिल
जो ज़िंदा रह के मुक़ाम-ए-हयात पा न सके
नया ज़माना बनाने चले थे दीवाने
नई ज़मीं, नया आसमाँ बना न सके