भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं कहती हूं / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुणा राय |संग्रह= }}<poem> मैं कहती हूं कि देखो-छूओ-...)
(कोई अंतर नहीं)

23:06, 24 अगस्त 2009 का अवतरण

मैं कहती हूं
कि देखो-छूओ-जानो
पर
मुझे बताओ मत
कि कैसा लगा
क्योंकि लगना
बीत चुका है
सोचो
कि कैसा लगेगा
कि यही संभव है
लंबे संवाद के बाद
चुप्पी का छोटा काल
कैसा लगेगा
यह जानने के लिए
कुछ दिन चुप रहो
चुप रहना भी
रहना ही है
अपने पूरेपन के साथ
इस चुप्पी को गहो
जो बीत गया
उसे मत कहो
मत कहो...