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"जहाँ में अब तो जितने रोज़ / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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20:22, 25 अगस्त 2009 का अवतरण

जहां में अब तो जितने रोज अपना जीना होना है, तुम्‍हारी चोटें होनी हैं- हमारा सीना होना है।

वो जल्‍वे लोटते फिरते हैं खाको-खूने-इंसॉं में  : 'तुम्‍हारा तूर पर जाना मगर नाबीना होना है।'

कदमरंजा है सूए-बाम एक शोखी कयामत की: मेरे खूने-हिना-परवर से रंगो जीना होना है!

वो कल आएंगे वादे पर मगर कल देखिए कब हो! गलत फिर , हजरते-दिल आपका तख्‍मीना होना है।

बस ए शमशेर, चल कर अब कहीं उजलतगर्जी हो जा कि हर शीशे को महफिल में गदाए मीना होना है।