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"जहाँ में अब तो जितने रोज़ / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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वो जल्‍वे लोटते फिरते हैं
 
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खाको-खूने-इंसॉं में  :
 
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'तुम्‍हारा तूर पर जाना
 
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मगर नाबीना होना है।'
 
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कदमरंजा है सूए-बाम
 
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एक शोखी कयामत की:
 
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मेरे खूने-हिना-परवर से
 
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रंगो जीना होना है!
 
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वो कल आएंगे वादे पर
 
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मगर कल देखिए कब हो!
 
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गलत फिर , हजरते-दिल
 
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आपका तख्‍मीना होना है।
 
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बस ए शमशेर, चल कर
 
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अब कहीं उजलतगर्जी हो जा
 
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कि हर शीशे को महफिल में
 
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गदाए मीना होना है।
 
गदाए मीना होना है।

20:33, 25 अगस्त 2009 का अवतरण

जहां में अब तो जितने रोज

अपना जीना होना है,

तुम्‍हारी चोटें होनी हैं-

हमारा सीना होना है।


वो जल्‍वे लोटते फिरते हैं

खाको-खूने-इंसॉं में  :

'तुम्‍हारा तूर पर जाना

मगर नाबीना होना है।'


कदमरंजा है सूए-बाम

एक शोखी कयामत की:

मेरे खूने-हिना-परवर से

रंगो जीना होना है!


वो कल आएंगे वादे पर

मगर कल देखिए कब हो!

गलत फिर , हजरते-दिल

आपका तख्‍मीना होना है।


बस ए शमशेर, चल कर

अब कहीं उजलतगर्जी हो जा

कि हर शीशे को महफिल में

गदाए मीना होना है।