भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वो बुलायें तो क्या तमाशा हो / साग़र सिद्दीकी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साग़र सिद्दीकी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> वो बुलायें तो ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:20, 27 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

वो बुलायें तो क्या तमाशा हो
हम न जायें तो क्या तमाशा हो

ये किनारों से खेलने वाले
डूब जायें तो क्या तमाशा हो

बन्दापरवर जो हम पे गुज़री है
हम बतायें तो क्या तमाशा हो

आज हम भी तेरी वफ़ाओं पर
मुस्कुरायें तो क्या तमाशा हो

तेरी सूरत जो इत्तेफ़ाक़ से हम
भूल जायें तो क्या तमाशा हो

वक़्त की चन्द स'अतें 'साग़र'
लौट आयें तो क्या तमाशा हो