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"क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

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मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले <br>
 
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क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं <br>
 
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं <br>
नज़र समेते हुए खड़ा हूँ <br><br>
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नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ <br><br>

20:26, 7 अप्रैल 2008 का अवतरण

रचनाकार: गुलज़ार

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क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूँ
ख़ुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आँखें झाँकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ